कैप्टन बाबा हरभजन सिंह 11 सितम्बर 1968 में 26 वर्ष की आयु में सिक्किम नाथूला दर्रे के पास एक हादसे का शिकार हो गए थे.
माना जाता है कि आज भी उनकी आत्मा घोड़े पर सवार होकर सीमा की रखवाली करती है.
पंजाब रेजीमेंट के इस फौजी में आस्था के कारण 1987 में वहां एक स्मृति स्थल बनाया गया जिसे बाबा हरभजन मंदिर कहा जाता है.
हरभजन सिंह सैनिक से कैप्टन बन गए हैं क्यूंकि उन्हें समय-समय पर प्रमोशन भी दिया जाता है.
1965 के भारत-पाक युद्ध में उन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किया.
जब भी भारत-चीन की सैन्य बैठक नाथुला में होती तो उनके लिए एक खाली कुर्सी छोड़ दी जाती.
रोज उनके लिए बिस्तर लगाया जाता है. उनकी वर्दी और जूते साफ़ कर रखे जाते हैं.
पहले उन्हें साल में एक महीने की छुट्टी दी जाती थी जहां उनकी वर्दी, टोपी, जूते एवं साल भर का वेतन उनके घर लाया जाता था.
जन्म : 3 अगस्त, 1941 को पंजाब में हुआ था.
-समय पत्रिका.
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