मायने बदल जाते हैं और हम होश में नहीं आते। मायने बदल जाते हैं और हम खुद को भूल भी जाते हैं। ये एक तरह का कन्फयूजन है। दिमाग कैसे काम करेगा? दिमाग को क्या चाहिए? सोचते रहिये, सोचने में क्या जाता है।
मैंने खिड़की से बाहर देखा। सब कुछ पीछे दौड़ रहा था। कहते हैं न कि जिंदगी दौड़ रही है। हम उसके साथ-साथ चल रहे हैं। सफर रोचक है और अनगिनत उतार-चढ़ाव भी।
बदलना कुछ नहीं चाहिए या बहुत कुछ बदलना चाहिए, यही सोचते हुए मैं आगे बढ़ रहा हूं। आंखें बंद कीं, नींद जैसा अहसास हुआ।
जब कुछ लिखने को नहीं है, तो मैंने उंगलियों को कीबोर्ड पर दौड़ा दिया है। अक्षरों की बनावट पर मेरा ध्यान नहीं है। मैं लिखे जा रहा हूं। यह लिखने और न लिखने का फर्क है। कुछ भी नहीं है यहां। सामने की सफेद दीवार को देखकर कोई यादों में नहीं खो सकता। किसी को क्यों ऐसा लगता है कि उसकी कहानी खुरदरेपन में सिमट जायेगी।
विचार, एक नहीं हजारों के झुंड में दौड़कर मुझसे चिपकने को आतुर हैं। यह जिंदगी की फरमाइश का नमुना भर है। धुंधली आंखों से जीवन की संध्या को देखना दिलचस्प है। सिराहने रखी उस तस्वीर को देखकर मन जी उठता है जिसकी आंखों में मेरे लिए अनुराग भरा है।
एक सपना बह निकला है। उम्मीदों की मचान पर कौन गिरायेगा हर्ष के फूल, कोई नहीं जानता। यकीन हो न हो, मगर रोमांच एक ढांचे से उठकर दूसरे को संगीत सिखा जायेगा। यह सच है, जीवन ऐसे ही नाचता है। लय की खामोशी हमें जगाये रखती है, बांधता तो मन ही है।
‘ख्वाबों की बस्ती सजा कर तो देखो, नींद आनी बंद हो जायेगी।’ उन शब्दों को भला कौन भूल सकता है। उस मुस्कान को जिसने उन पलों को फिर जीवित कर दिया जो गुम गये थे।
‘तुमने जिंदगी को इतने करीब से कैसे जान लिया?’ प्रश्न बिना पलक झपकाये कहा गया था जिसने उसे सोचने पर विवश किया था।
‘मुस्कान ने दुनिया को जीत लिया और मन से जग को।’
‘फिर सोच का क्या?’
‘वह तुम्हारे हिस्से।’
‘जिंदगी अधूरी ही भली, पूरी करती है तुम्हारी हंसी।’
‘शायराना अंदाज रहने दो।’
‘तुम मुस्कराना बंद कर दो।’
‘ओह, शब्द।’
‘हां, शब्द!’
‘शायर जो एक पल पहले खोया हुआ था, अब जाग गया है।’
‘वास्ते किसी के, कुछ पल अपनों के लिए,
बचाकर मैंने रखी जिंदगी तेरे लिए।’
‘खुश करने के पैंतरे, मायूसी भरे लहजे में या अंदाज शायरना किसी को लुभाने का।’
मेरे शब्द ठहर गये। होठ फड़फड़ाने लगे।
आंख खुली, नीला आसमान और कुछ कतरे बादलों के थे, बस!
-हरमिन्दर सिंह.
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