‘भारत और उसके विरोधाभास’ का लोकार्पण एवं परिचर्चा 7 जुलाई को

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यह कार्यक्रम साहित्य अकादेमी हॉल, फ़िरोज़ शाह रोड दिल्ली में आयोजित किया जाएगा.
राजकमल प्रकाशन हिन्दी पुस्तकों को प्रकाशित करने वाला प्रमुख प्रकाशन संस्थान भारत के दो प्रमुख अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन और ज्यां द्रेज़ की नई पुस्तक ‘भारत और उसके विरोधाभास’ लेकर आ रहे हैं। यह किताब 2014  में आई ‘एन अनसर्टेन ग्लोरी इंडिया एंड इट्स कंट्राडिक्शन’ का हिंदी अनुवाद है।

राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा 7 जुलाई शनिवार को शाम को 6:30 इस पुस्तक का लोकार्पण समारोह आयोजित कर रहा है जिसमें मशहूर लेखक और पत्रकार रवीश कुमार और सबा नकवी पुस्तक के लेखक अमर्त्य सेन एवं ज्यां द्रेज़ से परिचर्चा करेंगे। यह कार्यक्रम साहित्य अकादेमी हॉल, फ़िरोज़ शाह रोड दिल्ली में आयोजित किया जाएगा।

'भारत और उसके विरोधाभास' पुस्तक न सिर्फ भारत के सकल घरेलू उत्पाद के बारे में बात करती है बल्कि देश में लिंग मुद्दों के बारे में भी सवाल उठाती है। पुस्तक तर्क यह है कि वंचित लोगों को इसके लाभों के पुनर्वितरण के बिना आर्थिक विकास व्यर्थ है। इस पुस्तक का एक अतिव्यापी विषय सार्वजनिक चर्चा और नीति बनाने और लोकतांत्रिक राजनीति में अधिक ध्यान देने के लिए वंचित लोगों की जिंदगी, जरूरतों, अधिकारों और मांगों की आवश्यकता है। यह पुस्तक बताती है कि इन पारस्परिक सम्बन्धों के बारे में समझदारी का प्रभावी उपयोग किस तरह किया जा सकता है। जीवन-स्तर में सुधार तथा उनकी बेहतरी की दिशा में प्रगति और अन्तत: आर्थिक वृद्धि भी इसी पर निर्भर है।
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नब्बे के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था ने सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के लिहाज़ से अच्छी प्रगति की है।उपनिवेशवादी शासन तले जो देश सदियों तक एक निम्न आय अर्थव्यवस्था के रूप में गतिरोध का शिकार बना रहा और आज़ादी के बाद भी कई दशकों तक बेहद धीमी रफ्तार से आगे बढ़ा, उसके लिए यह निश्चित ही एक बड़ी उपलब्धि है।

लेकिन ऊँची और टिकाऊ वृद्धि दर को हासिल करने में सफलता अन्तत: इसी बात से आँकी जाएगी कि इस आर्थिक वृद्धि का लोगों के जीवन तथा उनकी स्वाधीनताओं पर क्या प्रभाव पड़ा है। भारत आर्थिक वृद्धि दर की सीढ़ियाँ तेज़ी से तो चढ़ता गया है लेकिन जीवन-स्तर के सामाजिक संकेतकों के पैमाने पर वह पिछड़ गया है-यहाँ तक कि उन देशों के मुकाबले भी जिनसे वह आर्थिक वृद्धि के मामले में आगे बढ़ा है।

दुनिया में आर्थिक वृद्धि के इतिहास में ऐसे कुछ ही उदाहरण मिलते हैं कि कोई देश इतने लम्बे समय तक तेज़ आर्थिक वृद्धि करता रहा हो और मानव विकास के मामले में उसकी उपलब्धियाँ इतनी सीमित रही हों। इसे देखते हुए भारत में आर्थिक वृद्धि और सामाजिक प्रगति के बीच जो सम्बन्ध है उसका गहरा विश्लेषण लम्बे अरसे से अपेक्षित है।

कार्यक्रम - पुस्तक लोकार्पण एवं परिचर्चा - ‘भारत और उसके विरोधाभास’
वक्ता - अर्थशात्री अमर्त्य सेन, ज्यां द्रेज़ एवं लेखक और पत्रकार रवीश कुमार एवं सबा नकवी
दिनांक : 7 जुलाई 2018, शाम 6:30 बजे
स्थान : साहित्य अकादमी हॉल, पहला तल, फ़िरोज़ शाह रोड, दिल्ली