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'मदारीपुर जंक्शन' ने जहां हमें मुस्कराने पर मजबूर किया, वहीं 'जिन्दगी 50-50' में हमें किन्नरों की जिन्दगी के भीतर झांकने का मौका मिला। 'सेपियन्स' जैसी किताब इस साल आयी सभी किताबों में सबसे दमदार कही जा सकती है। इसका हिन्दी अनुवाद बहुत लोकप्रिय हो रहा है। शशि थरुर की दो किताबों का हिन्दी में अनुवाद हुआ -'अन्धकार काल' और 'मैं हिन्दू क्यों हूं'। 'ग्यारहवीं-A के लड़के' ने हमें गौरव सोलंकी से मिलाया जिनकी कहानियों का अंदाज ही अलग है।
किताबों के लिए यह साल रंग-बिरंगा रहा। ऐसी कई किताबें आयीं जिन्हें आप अपनी अलमारी से कभी हटाना नहीं चाहेंगे।
अब तैयार रहें 2019 के लिए क्योंकि वहां भी रंग कम होने वाले नहीं!
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