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डॉ. शशि थरूर ने राजनीतिक हिन्दूवाद के रास्ते संविधान पर उठते संकटों को रेखांकित किया. |
शशि थरूर की पुस्तक 'मैं हिन्दू क्यों हूँ' का अनुवाद युगांक धीर द्वारा किया गया है।
कार्यक्रम के आरम्भ में डॉ. शशि थरूर ने अपने वक्तव्य में मुख्य रूप से धर्म की बहुलता व सहिष्णुता को रेखांकित करते हुए स्वामी विवेकानन्द की दार्शनिक विचारधारा को विशेष रूप से स्मरण किया। उन्होंने हिन्दूवाद, हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के आशयों को स्पष्ट करते हुए राजनीतिक हिन्दूवाद के रास्ते संविधान पर उठते संकटों को रेखांकित किया। बाबरी मस्जिद से उठे हिन्दुत्व के उभार के कारण उत्पन्न हुए राजनीतिक माहौल में बनती एकध्रुवीय सोच पर भी चर्चा की।
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए राहुल देव ने हिन्दूवाद को 'हिन्दूइज़्म' का अनुवाद उपयुक्त न मानते हुए कहा यह किताब कथ्य और संप्रेष्य के स्तर पर विचार करने को प्रेरित करती है। उन्होंने बदलते हुए परिदृश्य में साम्प्रदायिकता के परिणामों पर सचेत किया ओैर किताब को महत्त्वपूर्ण माना।
देवी प्रसाद त्रिपाठी ने हिन्दू धर्म की आज की स्थिति के आलोक में शशि थरूर की किताब के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि हिन्दू धर्म की मूल भावना बहुलता, सहिष्णुता, सहकार है। व्यास ऋषि का उद्धरण देते हुए उन्होंने कहा कि दूसरों का उपकार ही धर्म है और दूसरों का अपकार पाप है। इसके अलावा उन्होंने धर्म में नवीन धारणाओं और आस्थाओं को भी महत्त्वपूर्ण मानते हुए धर्म को सतत गतिशील बताया।
जानीमानी लेखिका तसलीमा नसरीन ने मुस्लिम समाज और राजनीति में कट्टरता को पाकिस्तान और बांग्लादेश के सन्दर्भ में उजागर करते हुए मुस्लिम स्त्रियों के अधिकारों के अपवंचन का मुद्दा उठाया। अभिव्यक्ति के बन्धनों के सन्दर्भ में भी उन्होंने सवाल उठाये और अपने निर्वासन को याद करते हुए भारत के उदात्त स्वरूप, धर्म के बौद्धिक लचीलेपन को भी रेखांकित करते हुए शशि थरूर की किताब को महत्त्वपूर्ण निरूपित किया।
क्लिक कर पढ़ें : हिन्दू धर्म के सभी पहलुओं को छूती है शशि थरूर की पुस्तक -'मैं हिन्दू क्यों हूँ'
अभय कुमार दुबे की राय में हिन्दुत्ववादियों का मूल मक़सद एक नस्लीय और जातिवादी राजनैतिक कम्युनिटी बनाना है। सावरकर के राजनीतिक उद्देश्यों को तार्किक रूप से सामने रखते हुए उन्होंने बताया कि उनका उद्देश्य बहुलतावादी भारतीय दृष्टि के विपरीत है और वे हिन्दू राष्ट्रवाद के समर्थक हैं। लोकतान्त्रिक सरकारों में उपस्थित बहुसंख्यक आवेश की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें वोट के लिए तुष्टिकरण सभी सरकारों की नीति रही है। जो खासतौर पर मुस्लिम वोट पाने के लिए अपनायी गयी। अभय कुमार दुबे ने बहुसंख्यकवाद के सौम्य ख़तरों के प्रति आगाह किया।
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खचाखच भरे इण्डिया इण्टरनेशनल सेण्टर के मल्टीपर्पज हाल में, श्रोताओं ने विद्वानों के विचार-विमर्श में अनुकूल प्रतिक्रियाओं के साथ किताब का स्वागत किया। धन्यवाद प्रस्ताव प्रबन्ध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने प्रस्तुत किया।