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इस किताब में महानगरीय जीवन का संत्रास, आवेग, ताप और हस्तक्षेप है. |
आभा बोधिसत्व ने कहा कि इस किताब में महानगरीय जीवन का संत्रास, आवेग, ताप और हस्तक्षेप है। स्त्री-विमर्श को केन्द्र में रखकर यह कृति मिथक से आधुनिक जीवन तक अपनी दृष्टि को विकास देती है। बचपन से लेकर आज तक जो देखा-सुना कि ये करना है, ये होना चाहिए। उसी का दस्तावेज़ है ये किताब 'सीता नहीं मैं'।
आभा के अनुसार कविता लिखना पंडिताई करना नहीं है। एक स्त्री जब कोई काम करती है तो उसमें कविता होती है। पढ़ना भी जरूरी है, दुनिया को देखना भी ज़रूरी है। स्त्री को कमतर आँकना सोशल मीडिया में दिखाई देता है। जब बोर्ड के रिज़ल्ट आते हैं तो हमेशा से अव्वल रहती हैं। स्त्री हँसती नहीं, स्त्री रोती नहीं, स्त्री बोलती नहीं, इस पर कोई बोलता है तो स्त्री इतना ही बोलती है, पहले स्त्री से बोलना सीखो।
~समय पत्रिका.