![]() |
समाज में जो भी विडम्बनाएँ हैं, कुरीतियाँ हैं, जो हमें अन्दर तक प्रभावित करती हैं. |
अपनी पुस्तक ‘नुक्कड़ पर दस्तक’ नाटक की पृष्ठभूमि बताते हुए उन्होंने कहा कि जो मंच पर है वह शब्दों में उतर कर आया हैं। उन्होंने अपने नुक्कड़ नाटक के बारे में बताया कि इसमें सामाजिक, सामुदायिक अन्य सभी विषय हमने शामिल किये हैं। समाज में जो भी विडम्बनाएँ हैं, कुरीतियाँ हैं, जो हमें अन्दर तक प्रभावित करती हैं, नुक्कड़ नाटक का विषय रही है।
परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए वाणी प्रकाशन के सीईओ लीलाधर मंडलोई ने प्रश्न पूछा कि नुक्कड़ नाटकों का इतिहास किस रूप में बदला?
अरविन्द ने उत्तर देते हुए कहा कि नुक्कड़ नाटक का तात्पर्य ही होता है कि आँखों में आँखे डालकर बातें करना।
अरविन्द गौड़ ने कुछ नाटकों का उदाहरण देते हुए कहा कि यदि लड़कों से नाइट फॉल के विषय पर बात की जाये तो वे संकोच करते हैं फिर उन्हें किसने ये हक दिया कि वह लड़कियों के मासिक धर्म जैसे विषय पर हँसी-मज़ाक़ करें। ये सभी विषय समाज के लिए बेहद ज़रूरी हैं, जिन्हें फ़िल्मों में भी दिखाया जा रहा है। अन्त में गौड़ ने अपने नाटक ‘नुक्कड़ पर दस्तक’ का विमोचन किया और बताया इस नाटक को छापने में नवीन तरीके का उपयोग किया है।
~समय पत्रिका.