'भारतीय संस्कृति-सभ्यता मेरे लेखन की धुरी है' -नरेन्द्र कोहली

कालजयी कथाकार नरेन्द्र कोहली
नरेन्द्र कोहली की पुस्तक 'सागर मंथन' पर चर्चा का आयोजन किया गया.
विश्व पुस्तक मेले में वाणी प्रकाशन के स्टॉल पर कालजयी कथाकार नरेन्द्र कोहली की पुस्तक 'सागर मंथन' पर चर्चा का आयोजन किया गया। उनका स्वागत वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने गुलदस्ता देकर और अंगवस्त्र भेंटकर किया। इस अवसर पर लेखक और पाठक समुदाय ने उन्हें बधाई दी।

लेखक नरेन्द्र कोहली ने कहा -'मैंने किस्सागोई का शिल्प आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी और अमृत लाल नागर से जाना समझा और विकसित किया। भारतीय संस्कृति-सभ्यता मेरे लेखन की धुरी है लेकिन मैं दूसरे धर्मों का पाठक भी हूँ।'

कोहली जी ने कहा कि'सागर मंथन' पूर्वात्य व पाश्चात्य संस्कृतियों का सांकृतिक द्वन्द हैं और ईसाई धर्म का सूक्ष्म कथ्य भी उन्होंने अपने लेखन में शामिल किया है। इसमें अमरीकी जीवन समाज का यथार्थ चित्रण है। विशेषकर प्रवासी भारतीय जीवन के बदलाव का रूपांकन है।

'रसराज पंडित जसराज' पर संवाद :

विश्व पुस्तक मेले में सुनीता बुद्धिराजा की प्रतिष्ठा प्राप्त कृति 'रसराज पंडित जसराज' पर संवाद हुआ। सुनीता बुद्धिराजा ने सात वर्षों के अथक समर्थन के साथ इसे लिखा है।

सुनीता बुद्धिराजा

इस किताब के संस्मरण के जिक्र में लेखिका को महादेवी वर्मा का एक कथन याद आया कि संगीत के लिए एक सुंदर दिल चाहिए। शीर्ष कलाकारों -हरिप्रसाद चौरसिया, शिवकुमार शर्मा, किशोरी अमोनकर आदि का प्रेम और मार्गदर्शन उनके लेखन की ताकत बनी। उनके भीतर संगीत ने एक आध्यात्मिक आनन्द सिरजा। यह जीवनी जीवन के पुण्य का प्रतिफल है। वे अगली किताब पर काम कर रही हैं जो वाणी से प्रकाशित होगी।

-समय पत्रिका.