'मैं बांग्लादेश नहीं जा सकती क्योंकि मैंने 'लज्जा' जैसे उपन्यास लिखे हैं' -तसलीमा नसरीन

तसलीमा नसरीन के उपन्यास 'बेशरम’
विश्व पुस्तक मेले में तसलीमा नसरीन के उपन्यास ‘बेशरम’ का लोकार्पण.
विश्वप्रसिद्ध लेखिका तसलीमा नसरीन के उपन्यास 'बेशरम’ का लोकार्पण विश्व पुस्तक मेले में राजकमल प्रकाशन के स्टॉल जलसाघर पर हुआ। इस अवसर पर लेखिका तसलीमा नसरीन के अलावा लेखिका अल्पना मिश्र, हिमांशु बाजपेयी एवं राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी मौजूद थे। लोकार्पण के बाद वरिष्ठ पत्रकार मनीषा पाण्डे ने लिखिका से विस्तार से बात की।

बेशरम उपन्यास तसलीमा नसरीन के 1993 में आये ‘लज्जा’ उपन्यास की उत्तर कथा है। 'लज्जा' की वजह से तसलीमा पर बांग्लादेश में कट्टरपंथी समूहों द्वारा फतवा किया गया था तथा उनकी किताब पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। लेखिका आज भी निर्वाषित जीवन व्यतीत कर रहीं हैं। इस उपन्यास का बांग्ला भाषा से हिंदी में अनुवाद उत्पल बैनर्जी द्वारा किया गया है।

लेखिका तसलीमा नसरीन ने किताब के बारे बताते हुए कहा कि उनके उपन्यास 'लज्जा' में हिन्दुओं को बांग्लादेश से कैसे सांप्रदायिक दंगो के कारण देश छोड़ना पड़ा था वह कहानी थी। वहीँ 'बेशरम' उपन्यास में 'लज्जा' के पात्र सुरंजन और माया का पराये मुल्क में संघर्ष दिखाया गया है। ये दोनों बांग्लादेश से भारत आये थे। यह उपन्यास राजनीतिक से हटकर सामाजिक जीवन पर केन्द्रित है।

लेखिका तसलीमा नसरीन
बांग्लादेश वापस जाने के प्रश्न पर लेखिका ने कहा -'जो लोग बांग्लादेश से उस समय छोड़ कर भारत में वापस आये अगर वे चाहें तो वापस बांग्लादेश जा सकते हैं क्योंकि उन लोगों के यादें वहां से जुड़ी हुई हैं। मगर मैं बांग्लादेश कभी वापस नहीं जा सकती क्योंकि मैंने 'लज्जा' आदि उपन्यास लिखे हैं। मुझे देश छोड़ने को मजबूर किया गया था। जो कुछ भी बांग्लादेश में घटित होता है उसके विरोध में मैं हमेशा लिखती हूँ। न केवल हिन्दुओं पर बल्कि अन्य  बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचारों पर भी मैंने हमेशा आवाज उठाई है।'

भारत के बारे में अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि भारत में रहना, जीना बांग्लादेश से अधिक आसान है। यहां मुझे हमेशा अपने देश ही की तरह लगा है और बहुत प्यार मिला है। मैं भारत की एक भाषा भी बोलती हूँ। मैं चाहती तो स्वीडन और अमेरिका में भी रह सकती हूँ क्योंकि मेरे पास वहां की नागरिकता है, मगर मेंने भारत को चुना।

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लेखिका तसलीमा नसरीन का 'बेशरम' उपन्यास उन लोगों के बारे में है जो अपनी जन्मभूमि को छोड़कर किसी और देश में, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पराये माहौल पर परायी आबोहवा में अपना जीवन बिता रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं कि तसलीमा ने यह जीवन बहुत नजदीक से  जिया है। उनकी विश्वस्तर पर चर्चित पुस्तक 'लज्जा' के लिए उन्हें कट्टरपंथियों ने देश निकाला दे दिया था। लम्बे समय से वह अपने मुल्क से बाहर हैं। इस उपन्यास में उन्होंने अपनी जड़ों से उखेड़ ऐसे ही जीवन की मार्मिक और विचारोतेजक कथा कही है। स्वयं उनका कहना है की यह उपन्यास लज्जा की तरह राजनितिक नहीं है। इसका उद्देश्य निर्वासन की सामजिक दुर्घटना और उसकी परिस्थतियों को रेखांकित करना है।

~समय पत्रिका.