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युवा पीढ़ी को अपनी लोक-परंपराओं से जोड़ने की ज़रूरत को इस आयोजन ने रेखांकित किया. |
कार्यक्रम दो खंडों में संपन्न हुआ। पहले खंड में लोकनाट्य नौटंकी के संदर्भ में संवाद था। संवाद खंड में 60-70 के दशक की हाथरस शैली की नौटंकी की चर्चित अदाकारा कृष्णा कुमारी माथुर, प्रसिद्ध रंगकर्मी प्रो. त्रिपुरारि शर्मा और चर्चित उपन्यासकार भगवानदास मोरवाल प्रमुख प्रतिभागी थे। इस खंड में कृष्णा जी ने नौटंकी में अपनी लगभग साठ वर्ष की यात्रा को बड़े दिलचस्प ढंग से सुनाया। उनकी इस यात्रा में नौटंकी के उतार-चढ़ाव भी शामिल थे।
त्रिपुरारि शर्मा ने अपने नाटक 'मौन एक मासूम-सा' को केन्द्र में रखकर नौटंकी के समकालीन प्रयोगों की संभावना और सार्थकता पर बात की। भगवानदास मोरवाल ने अपने उपन्यास सुर-बंजारन के लेखन की तैयारी के दौरान नौटंकी से जुड़े अनुभव साझा किए। नौटंकी का दूसरा खंड उसके प्रदर्शन से जुड़ा था। इस खंड में कृष्णा जी के साथ नौटंकी के वरिष्ठ गायक और वादक ताराचंद प्रेमी भी उपस्थित थे। कृष्णा जी और हीराचंद जी ने नक्कारे की धमक, ढोलक की थाप और हारमोनियम की सुर-तान के साथ नौटंकी के छंदों-दोबोला, चौबोला, लावनी, बहरतबील, बहरशिकस्त आदि की गायन-वादन की बारीकियों से दर्शकों को परिचित कराया। साथ ही नौटंकी की हाथरस शैली और कानपुर शैली के अंतर को भी समझाया। कार्यक्रम को उपस्थित दर्शकों ने क़ाफी चाव से देखा।
नौटंकी विधा को गंभीरता से लिया जाए और युवा पीढ़ी को अपनी लोक-परंपराओं से जोड़ने की ज़रूरत को इस आयोजन ने रेखांकित किया।