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नमिता गोखले का यह उपन्यास 12-14 वर्ष की लंबी अवधि में लिखा गया है. |
राग पहाड़ी का देशकाल, कथा–संसार उन्नीसवीं सदी के मध्य से लेकर बीसवीं सदी से पहले का कुमाऊं है। कहानी शुरू होती है लाल–काले कपड़े पहने ताल के चक्कर काटती छह रहस्यमय महिलाओं की छवि से जो किसी भयंकर दुर्भाग्य का पूर्वाभास कराती हैं।
आलोचक एवं बातचीत के सूत्रधार संजीव कुमार ने कहा कि यह उपन्यास इतिहास की तरह धीरे-धीरे खुलता है। तिथियों, किवदंतियों, से गुज़रते हुए कब यह उपन्यास औपन्यासिक कृति में बदल जाता है इसका एहसास नहीं होता। यह नमिता के लेखन की ख़ासियत है।
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उपन्यास का हिन्दी अनुवाद प्रोफ़ेसर पुष्पेश पन्त ने किया है। अनुवाद की कठिनाइयों पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि इस उपन्यास में पहाड़ के सारे ताने-बाने हैं जो पहाड़ को पूरे देश से जोड़ती है। इसमें प्रकति के बदलते चित्र, संगीत, जीवन और पहाड़ की खुशबू निहित है। उन्होंने बताया -'अनुवाद करते हुए मुझे कभी नहीं लगा की मैं किसी पुस्तक का अनुवाद कर रहा हूँ। यह मेरे लिए गौरव के बात थी क्योंकि मैं इन्हीं पहाड़ों का हूँ और पहाड़ों की संस्कृति और रीति रिवाजों से परचित हूँ। इस उपन्यास में जिस तरह से पहाड़ की खूबसूरती एवं जीवन को दर्शाया गया है मुझे लगा कि काश यह पुस्तक मैंने लिखी होती।'
लेखिका नमिता गोखले ने कहा -'इस उपन्यास को लिखने में मुझे 12-14 वर्ष लग गये, बाकी पुस्तकों के कारण इसके लिए कम समय निकाल पाती थी। यह कहानियां चित्रकारी के रंग और संगीत के स्वर एक अद्भुत संसार की रचना करते हैं जहाँ मिथक–पुराण, एतिहासिक–वास्तविक और काल्पनिक तथा फंतासी में अंतर करना असंभव हो जाता है। यह कहानी है शाश्वत प्रेम की, मिलन और बिछोह की, अदम्य जिजीविषा की।'