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नाटक में आदमी अपने क़द में दिखायी पड़ता है. अभिनेता और दर्शकों का सीधा परिचय दिखता है. |
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रो. चन्दन कुमार ने कहा कि दया प्रकाश को इतिहास परेशान करता है। इतिहास और सत्ता को समझने की चिन्ता है। यह भारतीय जिजीविषा का पर्याय है। यह उनके नाटकों में देखा जा सकता है। बालमन, इतिहासबोध, उनके नाटकों में है।
दया प्रकाश सिन्हा ने कहा कि मैं नाटक को एक लक्ष्य के रुप में लेकर चला हूँ। मैंने जो नाटक लिखे, मुझे पता नहीं था कि वे स्वीकार होंगे। पर यह अनायास ही स्वीकार कर लिए गए और आज उनपर पर्याप्त शोध और अनुवाद हो रहे हैं। नाटक में आदमी अपने क़द में दिखायी पड़ता है। अभिनेता और दर्शकों का सीधा परिचय दिखता है। फ़िल्मों में बड़ा और टेलीविज़न में छोटा।

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक देवेन्द्र राज अंकुर ने कहा कि ‘अशोक’ नाटक की भूमिका मैंने लिखी लिखी है। ‘कथा एक कंस की’ का नाट्य केन्द्र राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से पूर्व इलाहाबाद में स्थापित होता है।
मुख्य अतिथि प्रहलाद सिंह पटेल ने कहा कि दुनिया पहले से है आज शुरू नहीं हुई। उन्होंने कहा कि नाटक एक जीवन्त व्यवस्था है, दिशा भी देती है। समाज के निर्माण और संस्कृति के बारे में सोचना होगा कि इसके साथ हम न्याय कर रहें हैं या नहीं? चयन-प्रक्रिया पर जब सवाल करते हैं तो चयन कौन कर रहा है? इस पर विचार करना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्ष मृदुला सिन्हा ने कहा कि नाटक एक ऐसी विधा है जिसे हम अकेले नहीं देखते। सामूहिकता की यह विधा नाटक ही है जो हमें आपस में जोड़ती है। ‘सीता की आत्मकथा’ पर प्रश्न किए जाने पर मैंने कहा कि मैं ही ‘सीता’ हूँ। भारतीय संस्कृति में पत्नी, बहन आदि रूप को स्वयं जीया। वर्तमान की परिस्थितियों को निजात दिलाने के लिए पात्रों का चयन करते हैं। लिखते हैं, जीते हैं। दया प्रकाश सिन्हा इतिहास को वर्तमान में खोजते हैं। मृदुला सिन्हा ने कहा कि इतिहास को वर्तमान में प्रस्तुत कर दया प्रकाश ने दिखाया है।
संस्कार भारती के अध्यक्ष राजेश जैन चेतन ने कहा कि जहाँ दया प्रकाश सिन्हा को लिख दिया व संस्कार भारती समझो लिख दिया।