'यह उपन्यास पुराने गाँव का समाजशास्त्रीय अध्ययन है रोचक अंदाज़ में' -कृष्ण कल्पित

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पुस्तक में नई पीढ़ी के लिए लुप्त होते गाँवों के रीति-रिवाज़, त्योहारों का रोचक उल्लेख है.
विश्व पुस्तक मेले में वाणी प्रकाशन के स्टॉल पर वरिष्ठ पत्रकार ज्ञान चंद बागड़ी के नये उपन्यास 'आख़िरी गाँव' पर लोकार्पण और परिचर्चा की गयी। जिसमें नयी पीढ़ी के लिए लुप्त होते गाँवों के रीति-रिवाज़, त्योहारों का रोचक उल्लेख है।

इस अवसर पर हिन्दी के वरिष्ठ कवि कृष्ण कल्पित, वरिष्ठ साहित्यकार विनोद भारद्वाज, मानव - शास्त्री एन.के.वैद, कवि अजंता देव, वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार ईश मधु तलवार, कथाकार चरणसिंह पथिक, मीमांसा पत्रिका के सम्पादक नितिन यादव और लेखक ज्ञान चंद बागड़ी के अतिरिक्त अन्य साहित्यकार भी उपस्थित थे।

वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिति माहेश्वरी गोयल ने मंच का संचालन, उपन्यासकार ज्ञानचंद बागड़ी को सौंपा। ज्ञानचंद बागड़ी ने बताया कि जो रीति रिवाज़ बदलते जा रहे हैं उनका पुनः स्मरण किया जाना नयी पीढ़ी के लिए अति आवश्यक है, इसी उद्देश्य से इस उपन्यास की रचना की गयी है। सभी अतिथियों का परिचय देते हुए ज्ञानचंद बागड़ी ने हिन्दी के वरिष्ठ कवि कृष्ण कल्पित से अपने उपन्यास पर कुछ टिप्पणियाँ का आग्रह किया। वरिष्ठ कवि कृष्ण कल्पित के अनुसार यह उपन्यास पुराने गाँव का समाजशास्त्रीय अध्ययन बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत करता है। 

वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार ईश मधु तलवार ने भी इस उपन्यास को भारतीय धरोहर की रक्षा करने वाला और नयी पीढ़ी के लिए भी एक महत्वपूर्ण उपन्यास माना। कार्यक्रम के अन्त में सभी अतिथियों द्वारा उपन्यास 'आख़िरी गाँव' का विमोचन किया गया।