विश्व पुस्तक मेला 2020 : जलसाघर में 'कश्मीर और कश्मीरी पंडित' पुस्तक का लोकार्पण

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कश्मीर के 1500 साल के इतिहास और कश्मीरी पंडितों के पलायन का पुस्तक में वर्णन है.
विश्व पुस्तक मेले में पाठक 'कश्मीर और कश्मीरी पंडित' किताब का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। मेले में राजकमल प्रकाशन के ‘जलसाघर’ के मंच से अशोक कुमार पंडित के उपन्यास का लोकार्पण किया गया। इस मौके पर कश्मीरी पंडित वांचु परिवार भी उपस्थित रहा। उपन्यास में अशोक कुमार पांडेय ने कश्मीर के 1500 साल के इतिहास और कश्मीरी पंडितों के पलायन को समेटा है। पुस्तक के बारे में लेखक से पत्रकार प्रकाश के. रे ने बातचीत कर कहा कश्मीर के मौजूदा हालात और इसके इतिहास पर कई सवाल किए।

सवालों का जवाब देते हुए अशोक कुमार ने कहा कि किताब के रिसर्च के लिए वे अगस्त के बाद कश्मीर गये और वहां कश्मीरियों से बातचीत की। धारा 370 के हटने का असर हम बर्फ़ पिघलने के बाद ही समझ पाएंगे। मार्च के बाद हमें पता चलेगा कि धारा 370 के हटने का क्या असर हुआ है।

कश्मीर का इतिहास, समाज, राजनीति और उसकी समस्याओं को इस किताब में विस्तार से बताया है। इसमें कश्मीर का 1500 वर्षों का इतिहास है और कश्मीरी पंडितों के पलायन की प्रमाणिक दास्तान है। कश्मीर पर ये अपनी तरह का प्रामाणिक उपन्यास है।

बातचीत में पत्रकार प्रकाश के. रे ने कहा कि कश्मीर के बारे में पहले सिर्फ घटनाओं पर भी बात होती है। उसमें तथ्य, विमर्श और विश्लेषण बहुत कम होता था। यह किताब आने के बाद यह कमी पूरी हो गई।

इस मौके पर ख़ास कश्मीर से आए कुमार वांचु और उनके परिवार ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कश्मीर उतना नहीं है जो हम खबरों में देखते हैं। कश्मीर पंडित के दो पक्ष चलते रहते हैं। एक में उनको हीरो बना दिया जाता है और दूसरे में बस बहस होती है।

उन्होंने कहा कि हर कोई जानता है कि नब्बे दशक में कश्मीर पंडितों ने पलायन किया, कैंपों में उन्हें जगह दी गई। लेकिन ये बहुत कम लोगों को पता है कि उसी समय 50 हजार मुसलमानों ने भी पलायन किया था और उनको कैंपों में भी जगह नहीं दी गई।

किताब खरीदने के लिए पाठकों की लंबी कतार देखने लायक थी।

महुआ माजी ने किया अपने नए उपन्यास से अंश पाठ :

राजकमल प्रकाशन के जलसाघर में पाठकों के बीच लेखिका महुमा माजी ने अपने शीघ्र प्रकाश्य उपन्यास से एक छोटा सा हिस्सा पढ़ कर सुनाया। महुआ के दो उपन्यास ‘मैं बोरिशाइल्ला‘ और ‘मरंगगोड़ा नीलकंठ हुआ‘ राजकमल प्रकाशन से पहले से प्रकाशित हैं। मेले में पाठक इन किताबों को पसंद कर रहे हैं और ख़रीद रहे हैं।

लेखक से मिलिए कार्यक्रम में लेखक-आलोचक प्रभात रंजन और मृत्युंजय के उपन्यास के नाम को लेकर किए गए सवाल का जवाब देते हुए महुआ ने कहा, 'उपन्यास के नाम को लेकर अक्सर मुझसे सवाल पूछे जाता है, लेकिन मैं बहुत पर्फेक्शनिस्ट हूँ। जब तक उपन्यास पूरा न हो जाए नाम तय कर पाना मेरे लिए बहुत मुश्किल होता है।'

महुआ के नए उपन्यास का पाठक बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। भाषा और शिल्प में अपने लोक को समाहित करने वाली लेखिका हमेशा अपने उपन्यासो में नए विषयों को लेकर आती हैं।

राम मिलन की किताब 'रमुआ-कलुआ-बुधिया और राष्ट्रवाद' पुस्तक का लोकार्पण :

विश्व पुस्तक मेले में राजकमल प्रकाशन के स्टॉल जलसाघर में ‘रमुआ-कलुआ-बुधिया और राष्ट्रवाद’ पुस्तक का लोकार्पण किया। इस समय देश में राष्ट्रवाद पर बहस चल रही है और उसी राष्ट्रवाद को समझाने की कोशिश लेखक ने अपनी किताब में की है।

किताब पर आलोचक मृत्युंजय से बातचीत करते हुए लेखक राम मिलन ने कहा, 'आज सारी राजनीति धर्म पर टिकी हुई है। 'रमुआ-कुलआ-बुधिया' कोई नाम न होकर पूरा जनमानस है।' किताब में लेखक ने राष्ट्रवाद की कई प्रकार की अवधारणाओं पर विस्तार से बताया है। 

राष्ट्रवाद के बारे में लेखक ने बताया, 'राष्ट्रवाद की सबसे पहली इकाई मनुष्य है। मैंने इस किताब में जातिवाद, धार्मिक, लैंगिक राष्ट्रवाद के बारे में विस्तार से बताने की कोशिश की है। हो सकता है इस पर कुछ लोग सहमत हों और कुछ लोग असहमत हों।'