वाणी डिजिटल शिक्षा श्रृंखला : हिन्दी साहित्य में शोध की संभावना और चुनौतियाँ

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सुपरिचित आलोचक निरंजन सहाय और सुधीर प्रताप सिंह ने हिन्दी साहित्य चर्चा की.

वाणी डिजिटल शिक्षा श्रृंखला के दूसरे पड़ाव का पन्द्रहवाँ व्याख्यान ‘भाषा के नये विमर्श और हिन्दी’ विषय पर हुआ। इस विषय पर व्याख्यान दिया सुपरिचित आलोचक निरंजन सहाय ने। भाषा पर बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि भाषा का अस्मिता, वर्चस्व, प्रतिरोध, जेंडर और वर्गीय हित से गहरा नाता होता है। भाषा में व्यक्ति, समाज और इनके साथ मिलकर भाषा अभिव्यक्ति का एक सिलसिला चलता है। समाज में वर्गीय चेतना के साथ भाषा की निर्मिति भी होती है। भारतीय चेतना के सन्दर्भ में यहाँ के तर्क और संवाद की परम्परा को विवेचित करते हुए निरंजन जी ने बताया कि हिन्दी का भाषिक संसार बहुत बहुलतावादी और जनपदीय चेतना से भरा हुआ है। हिन्दी में अमीर खुसरो, विद्यापति, तुलसी जायसी, रसखान से लेकर प्रेमचन्द, निराला, महादेवी वर्मा इन सब की भाषाओं में हिन्दी के अलग-अलग रंग दिखाई देते हैं। भाषा–विमर्श पर बात करते हुए हिन्दी-उर्दू के विवाद पर भी उन्होंने ज़िक्र किया। भाषा में जेंडर व्याकरण की दृष्टि से भूगोल की दृष्टि से उसकी संस्कृति को समझा जा सकता है। प्रायः कहानियों में या कथाओं में दर्ज भाषा में निहित वर्गीय हित को देखते हुए उसकी विवेचना करने से हमें भाषा-विमर्श के नये रूप दिखाई देते हैं। किसी भी देश और समाज की भाषा उसके प्रतिरोधात्मक लोकतन्त्रिक चेतना और उसमें निहित बहुलतावादी और स्थानीय चेतना से जीवन्त बनती है। हिन्दी भाषा अपने नये तेवर में विरोधी चेतना और लोकतान्त्रिक स्वरूप विकसित हो रही है।

सोलहवें व्याख्यान का विषय 'हिन्दी साहित्य में शोध की सम्भावना और चुनौतियाँ' पर केन्द्रित  रहा। इस विषय पर व्याख्यान दिया आलोचक और अध्येता सुधीर प्रताप सिंह ने। शोध की सम्भावनाओं पर बातचीत करते हुए भारतीय चिन्तन परम्परा में शोध के अर्थ, वांग्मय, शास्त्र, कविता, भाषा, टीका की विवेचना करते हुए उन्होंने शोध की सम्भावनाओं की तथ्य अन्वेषी प्रवृत्तियों पर विस्तार से चर्चा की। शोध प्रविधि पर बातचीत करते हुए शोध टिप्पणी, सन्दर्भ और टीप पर उन्होंने प्रकाश डाला। विषय चयन की दृष्टि से एक ही विषय पर अलग-अलग शोध की सम्भावनाएँ तलाशी जा सकती हैं। जैसे कामायनी पर मुक्तिबोध, रामस्वरूप चतुर्वेदी और नगेन्द्र ने काम किया। हिन्दी में शोध की सम्भावनाओं पर बातचीत करते हुए उन्होंने साहित्य के समाजशास्त्र, साहित्य में अन्तर अनुशासनिक सम्बन्ध, तुलनात्मक साहित्य, वर्तमान और प्राचीन साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन, लोकप्रिय साहित्य बनाम मुख्यधारा का साहित्य, साहित्य में इतिहास, राजनीति और संस्कृति के आन्तरिक सम्बन्धों की बात की। हिन्दी में शोध की बात करते हुए भाषा और लिपि ज्ञान को उन्होंने महत्त्वपूर्ण माना।