वाणी डिजिटल : प्रवासी साहित्य लेखन और लैंगिक विमर्श पर चर्चा

vani-digital-news
कवि व आलोचक चन्द्रकला त्रिपाठी तथा स्त्रीवादी समीक्षक श्रद्धा सिंह ने अपने विचार साझा किए.

वाणी डिजिटल शिक्षा श्रृंखला के दूसरे पड़ाव का तेरहवाँ व्याख्यान ‘प्रवासी साहित्य लेखन और हिन्दी’ पर हुआ। इस विषय पर व्याख्यान दिया कवि व आलोचक चन्द्रकला त्रिपाठी ने। 

प्रवासी साहित्य की अवधारणा पर बातचीत करते हुए संस्कृत साहित्य में कालिदास के ‘मेघदूत’ और आधुनिक हिन्दी के कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की कविता का ज़िक्र करते हुए साहित्य में इसकी उपस्थिति का विवेचन किया। भारत में औपनिवेशिक पूँजी के विस्तार के दौर में भारत से मारीशस और फिज़ी जैसे देशों में गिरमिटिया मज़दूर ले जाये गये और वहाँ उन्होंने विस्थापन का दंश झेला। इस दारुण क़िस्म की गुलामी का अभिमन्यु अनंत के उपन्यास लाल पसीना में गहराई से देखा जा सकता है। प्रवासी साहित्य के इस दौर के लेखन में संघर्ष प्रधान चीज़ है। इसके बाद प्रवासन की मनोभूमि का दूसरा पड़ाव जहाँ स्वेच्छा से जाना हुआ। नौकरी के लिए, रोज़गार के लिए। इस दौर के साहित्यकारों में उषा प्रियंवदा, सुषम वेदी, तेजेन्द्र शर्मा और उषाराजे सक्सेना। इनके साहित्य में प्रवासन की संस्कृति और नयी चुनौतियों को करीने से दर्ज़ किया गया। यहाँ प्रवासी साहित्य में संघर्ष कुछ भिन्न है। वर्तमान दौर में प्रवासी साहित्य में कई महत्त्वपूर्ण रचनाकार अपनी रचनाओं के द्वारा वैश्विक समस्याओं प्रवासी जीवन की अस्मिता और पूँजी के बढ़ते संकट को दर्ज़ करते हैं। यहाँ अपने अस्तित्व की खोज का प्रश्न प्रमुख है।

चौदहवें व्याख्यान का विषय ‘लैंगिक विमर्श, थर्ड जेंडर और हिन्दी’ था। इस विषय पर व्याख्यान दिया स्त्रीवादी  समीक्षक श्रद्धा सिंह ने। उन्होंने थर्ड जेंडर के ऐतिहासिक और पौराणिक स्रोतों की बात करते हुए भारतीय समाज में इनकी उपस्थिति के बारे में विवेचन किया। किस तरह ब्रिटिश काल में किन्नरों के प्रति उपेक्षित व्यवहार किया गया। साहित्य में इसकी उपस्थिति को शिव प्रसाद सिंह की कहानी ‘बिंदा महाराज’ से ज़िक्र करते हुए उन्होंने अन्य कई कहानीकारों का ज़िक्र किया। उपन्यासों में नीरजा माधव का ‘यमदीप’, चित्रा मुद्गल का ‘नालासोपारा’ जैसी प्रमुख रचनाओं का विवेचन किया। कई कविताएँ भी इस पर लिखी गयी है। वांग्मय पत्रिका के द्वारा थर्ड जेंडर पर महत्वपूर्ण सामग्री का प्रकाशन हुआ है। आत्मकथा के रूप में ‘मैं हिजड़ा... मैं लक्ष्मी!’ लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की आत्मकथा को विशेष रचना के रूप में आपने विवेचित किया। आज के समय में थर्ड जेंडर को नये सिरे से देखने की ज़रूरत है।