वाणी प्रकाशन ग्रुप के नए उपक्रम 'वाणी पृथ्वी' का आरम्भ

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वाणी प्रकाशन ने 'वाणी पृथ्वी' नाम से एक नया उपक्रम शुरु किया है जिसके तहत नई किताबें जल्द आ रही हैं.

'वाणी पृथ्वी' के नाम से वाणी प्रकाशन ग्रुप द्वारा एक नए पुस्तक उपक्रम का आरम्भ किया गया है। ‘वाणी पृथ्वी’ श्रृंखला के अंतर्गत पर्यावरण, प्रकृति, किसान, जल, जंगल, ज़मीन, जीव-जन्तु और पृथ्वी से विलुप्त होती अनेकानेक दुर्लभ प्रजातियाँ आदि पर आधारित साहित्य पाठकों के लिए सुलभ कराया जा रहा है।

आज कोरोना काल ने समस्त मानव जाति के अहंकार और गैर-ज़िम्मेदारी को बेनक़ाब कर दिया है। मनुष्य ने पीढ़ियों से जनजातियों के प्रति संवेदनहीनता, पृथ्वी के खनिज पदार्थों के दुरुपयोग और आपातकालीन संख्या पार कर चुके प्रदूषण को आम जीवन बना डाला। यह मानव इतिहास का अलक्षित पतन ही है।

ऐसे में हमें ज़्यादा-से-ज़्यादा ऐसा साहित्य चाहिए जो हमें अपने पर्यावरण से नये रूप से जोड़े।भारतीय वन्यजीवन दुनिया के तमाम हिस्सों से अनूठा रहा है। भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग जलवायु मौजूद है। एक तरफ रेगिस्तान है तो दूसरी तरफ बर्फ की ऊंची चोटियां। समुद्रों से घिरा एक बड़ा भू-भाग। इसने भारतीय वन्यजीवन को एक अलग विशिष्ठता प्रदान की है। सुन्दर भूमण्डल पर हम अकेले नहीं हैं। हजारों-लाखों जीव-जन्तु, पेड़-पौधे और वनस्पतियां हमारे साथ इस धरती को साझा करती हैं। कोई दौड़ता है। कोई तैरता है। कोई उड़ता है। कोई रेंगता है। जीवन के सभी रूप जीने के लिए एक-दूसरे का सहयोग करते हैं। यही ईकोसिस्टम है।

धरती का जीवन इसी तरह आगे बढ़ता है। जहां भी इस जीवन प्रवाह को रोका जाता है, वहीं पर विकृति और विलुप्ति प्रारम्भ हो जाती है। कोई एक जाता है तो उससे जुड़ा दूसरा भी धीरे-धीरे चला जाता है। क्या इस जीवन प्रवाह को बाधा पहुंचाकर, इसे रोककर, इसे प्रभावित कर हम बचे रहेंगे? क्या धरती पर अकेले हमारा यानी मनुष्यों का जीवन सम्भव है?

इस दिशा में वाणी पृथ्वी से संजय कबीर के साथ 'जंगल कथा' श्रृंखला प्रकाशित की जा रही है जिसकी पहली पुस्तक 'चीता' प्रकाशित हुई है।

इसी श्रृंखला में अवकाशप्राप्त वरिष्ठ प्रशासक राधामोहन महापात्र का हाथी के जंगल जीवन पर आधारित उपन्यास 'मिस्टर खरसेल' प्रकाशित हुआ है।

नए उपक्रम की घोषणा के उपलक्ष्य पर वाणी प्रकाशन ग्रुप के चेयरमैन व मैनेजिंग डायरेक्टर अरुण माहेश्वरी का कहना है, "'वसुधैव कुटुम्बकम' जैसे पवित्र अध्यात्म पर विकसित हुई हमारी संस्कृति आज जिस चौराहे पर आ खड़ी हुई है, वह न केवल शर्मनाक है बल्कि निराशाजनक भी है। मानव इतिहास में यह काल जीव हत्या, अहिंसा, महामारी और अविश्वास का काल माना जायेगा। ऐसे में हमें सबसे पहले यह सोचना चाहिए कि इस धरती को हम किस रूप में अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए तैयार कर रहे हैं? क्या हम इसे पूर्ण रूप से नष्ट कर देंगे? जब हवा, पानी, मिट्टी और मन- सबमें बसी संवेदना प्रदूषण से नष्ट हो चलेगी, जब कुछ बचाने के लिए बचेगा ही नहीं, क्या हम तब कुछ बचाने निकलेंगे? पर शायद तब तक बहुत देर न हो जाये। इसी चिंतन और उम्मीद के साथ 'वाणी पृथ्वी' की नींव रखी जा रही है। देश के प्रसिद्ध पर्यावरणविद और प्रकृति विशषज्ञों का वाणी प्रकाशन ग्रुप स्वागत करता है। उम्मीद है कि हम सभी मिल कर कुछ नया, सकारात्मक, सुंदर बना पाएंगे...अपनी धरती को मिल कर बचा पाएंगे।"

‘चीता’ :

इस पुस्तक में पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के साढ़े तीन अरब सालों में न जाने कितने क़िस्म के जीव पैदा हुए और मर-खप गये। कॉकरोच और मगरमच्छ जैसे कुछ ऐसे जीव हैं जो हज़ारों-लाखों सालों से अपना अस्तित्व बनाये रखे हुए हैं। जबकि, जीवों की हज़ारों प्रजातियाँ ऐसी रही हैं, जो समय के साथ तालमेल नहीं बैठा सकीं और विलुप्त हो गयीं। उनमें से कुछ प्रजातियाँ ऐसी भी थीं जो पूरी प्रकृति की नियन्ता भी बन चुकी थीं। लेकिन, जब वे ग़ायब हुईं तो उनका निशान ढूँढ़ने में भी लोगों को मशक़्क़त करनी पड़ी। हालाँकि, विलुप्त हुए जीवों ने भी अपने समय की प्रकृति और जीवों में ऐसे बड़े बदलाव किये, जिनके निशान मिटने आसान नहीं हैं। भारत के जंगलों से भी एक ऐसा ही बड़ा जानवर हाल के वर्षों में विलुप्त हुआ है, जिसके गुणों की मिसाल मिलनी मुश्किल है। चीता कभी हमारे देश के जंगलों की शान हुआ करता था। उसकी चपल और तेज़ रफ़्तार ने काली मृग जैसे उसके शिकारों को ज़्यादा-से-ज़्यादा तेज़ भागने पर मजबूर कर दिया। काली मृग या ब्लैक बक अभी भी अपनी बेहद तेज़ रफ़्तार के लिए जाने जाते हैं। इस किताब में भारतीय जनमानस में रचे-बसे चीतों के ऐसे ही निशानों को ढूँढ़ने के प्रयास किये गये हैं। यक़ीन मानिए कि यह निशान भारत के जंगलों में अभी भी बहुतायत से बिखरे पड़े हैं। ज़रूरत सिर्फ़ इन्हें पहचानने की है। भारतीय जंगलों के यान कोवाच की मौत भले ही हो चुकी है लेकिन उनका अन्त नहीं हुआ है। उनके अस्तित्व की निशानियाँ अभी ख़त्म नहीं हुई हैं।

'मिस्टर खरसेल':

'मिस्टर खरसेल' एक अनन्य तथा अनुपम कृति है। यह पुस्तक न केवल प्राणी प्रीति का कोई विशेष दस्तावेज़ है बल्कि यह आज स्वार्थपरक मनुष्य कैसे वन्यप्राणी और उनके विकास को लूट कर उन्हें विपन्न एवं निश्चिन्ह कर रहा है, इस तथ्य का इस उपन्यास में अति चमत्कारिक ढंग से वर्णन हुआ है। 'वन के राजा कौन?' परिच्छेद में हाथियों का बाघों के साथ आपसी कलह और वाक्युद्ध ख़ूब प्रभावशाली हो पाया है। इसमें मनुष्य के प्रति एक 'महाविपत्ति को परोक्ष में आमंत्रित करने की बात को भी लेखक ने दर्शाया है।

‘ओह रे! किसान’ :

इसी कड़ी की अगली पुस्तक युवा रचनाकार व किसान अंकिता जैन की ‘ओह रे! किसान’ पाठकों के समक्ष जल्द प्रस्तुत होने वाली है। इस पुस्तक में लेखिका, जो कि इंजीनियर हैं लेकिन पेशे से किसानी करती हैं, ने समाज में किसानों के हालातों पर रोशनी डाली है। पुस्तक अक्टूबर में उपलब्ध होगी।

वाणी प्रकाशन के बारे में :

वाणी प्रकाशन ग्रुप 58 वर्षों से 32 साहित्य की नवीनतम विधाओं से भी अधिक में बेहतरीन हिन्दी साहित्य का प्रकाशन कर रहा है। वाणी प्रकाशन ग्रुप ने प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ऑडियो प्रारूप में 6,000 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। वाणी प्रकाशन ने देश के 3,00,000 से भी अधिक गाँव, 2,800 क़स्बे, 54 मुख्य नगर और 12 मुख्य ऑनलाइन बुक स्टोर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है।