'मैं वैश्वीकरण के ख़िलाफ़ नहीं हूँ लेकिन चाहता हूँ कि करुणा का वैश्वीकरण हो' - कैलाश सत्यार्थी

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श्री सत्यार्थी ने बच्चों के अधिकारों को लेकर देश और दुनिया में कई आन्दोलन शुरू किये और उनका नेतृत्व किया.

नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी के नए कविता संग्रह ‘चलो हवाओं का रुख़ मोड़ें’ का आवरण पृष्ठ लोकार्पण वाणी प्रकाशन ग्रुप द्वारा बहुत उत्साह से किया गया।

कोविड-19 के कारण यह लोकार्पण समारोह ऑनलाइन गोष्ठी के रूप में वाणी प्रकाशन ग्रुप के सभी डिजिटल माध्यमों पर हुआ। इस समारोह का प्रारम्भ श्री सत्यार्थी से सम्बन्धित एक वीडियो द्वारा किया गया।

दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित ‘नोबेल शान्ति पुरस्कार’ से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी पहले ऐसे भारतीय हैं, जिनकी जन्मभूमि भारत है और कर्मभूमि भी। वे दुनिया के इकलौते नोबेल विजेता हैं जिसने अपना नोबेल पुरस्कार राष्ट्र को समर्पित कर दिया है। उनका नोबेल पदक अब ऱाष्ट्रपति भवन के संग्रहालय में आम लोगों के दर्शन के लिए रखा है। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक श्री सत्यार्थी ने जीविकोपार्जन के लिए अध्यापन कार्य चुना लेकिन उनके मन में ग़रीब व बेसहारा बच्चों की दशा देखकर उनके लिए कुछ करने की अकुलाहट थी। जब देश-दुनिया में बाल-मज़दूरी कोई मुद्दा नहीं हुआ करता था, तब श्री सत्यार्थी ने सन् 1981 में ‘बचपन बचाओ आन्दोलन’ की स्थापना की।

श्री सत्यार्थी ने बच्चों के अधिकारों को लेकर देश और दुनिया में कई आन्दोलन शुरू किये और उनका नेतृत्व किया। दुनियाभर के वंचित, ग़रीब और हाशिए के बच्चों की शिक्षा, सुरक्षा और आजादी के वैश्विक संघर्ष और हस्तक्षेप के लिए उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेताओं और विश्व नेताओं को एकजुट कर ‘लॉरिएट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन’ की स्थापना की है। कैलाश सत्यार्थी ने पूरी दुनिया में बच्चों के प्रति हिंसा को ख़त्म करने के मक़सद से ‘100 मिलियन फॉर 100 मिलियन’ नामक एक विश्वव्यापी ऐतिहासिक आन्दोलन की भी शुरुआत की है। इसी कड़ी में श्री सत्यार्थी ने भारत में बाल यौन शोषण और बाल दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) के ख़िलाफ़ सन 2017 में 11,000 किलोमीटर की देशव्यापी ‘भारत यात्रा’ का आयोजन और नेतृत्व किया।

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बचपन हिंसा, अत्याचार और त्रासदी से मुक्त होना चाहिए, इसके लिए उन्होंने ‘कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेंस फाउंडेशन’ की स्थापना की है। साथ ही बाल मित्र समाज बनाने के लिए उन्होंने ग्राणीण इलाके में ‘बाल मित्र ग्राम’ और शहरी स्लम इलाके में ‘बाल मित्र मंडल’ के निर्माण की अभिनव पहल की है। कोविड-19 महामारी के संकट से उबरने के लिए अमीर देशों ने जो अनुदान दिया है, उसका उचित हिस्सा (जनसंख्या अनुपात के हिसाब से 20 फ़ीसदी) वंचित और हाशिए के बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा आदि पर खर्च हो, इसके लिए वे ‘फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन’ नाम से विश्वव्यापी अभियान भी चला रहे हैं।

श्री सत्यार्थी पहले ऐसे भारतीय हैं, जिन्हें नोबेल पुरस्कार के साथ-साथ डिफेंडर्स ऑफ़ डेमोक्रेसी अवॉर्ड, मेडल ऑफ़ इटैलियन सीनेट, रॉबर्ट एफ कैनेडी ह्यूमन राइट्स अवॉर्ड, हार्वर्ड ह्यूमैनिटेरियन अवॉर्ड जैसे दुनिया के सम्मानित पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है।

अपनी जनजागरूकता यात्राओं के गीत भी वे ख़ुद ही लिखते थे। उनकी पाँच पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। कुछ का विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है।

भारतीय मूल्यों और संस्कृति में गहरी आस्था रखने वाले श्री सत्यार्थी हिन्दी व अंग्रेज़ी भाषा पर समान अधिकार रखते हैं तथा नोबेल शान्ति पुरस्कार ग्रहण करते हुए अपना हस्ताक्षर हिन्दी में किया है। नोबेल पुरस्कार ग्रहण समारोह में उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत भी हिंदी और संस्कृत के वेद मन्त्रों से की थी।

इस कार्यक्रम का संचालन कवि, कलाविद व आलोचक श्री यतीन्द्र मिश्र द्वारा किया गया। श्री यतीन्द्र मिश्र स्वर्ण कमल से सुसज्जित, भारतीय सम्मानों से सम्मानित कवि, सम्पादक और संगीत अध्येता हैं।

कार्यक्रम के वक्ता के रूप में, पद्मश्री अलंकृत व साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित श्रीमती उषाकिरण खान, जोकि मैथिली तथा हिंदी भाषा की प्रख्यात लेखिका हैं, ने कार्यक्रम में अपनी बात रखते हुए कहा कि "कैलाश सत्यार्थी जी उन लोगों में से हैं जो तपे तपाये लोग हैं। गाँधी जी के मार्ग पर चलने वाले सत्यार्थी जी को नमन।"

कार्यक्रम के अन्य वक्ता श्री कुमार विश्वास, एक प्रख्यात हिन्दी कवि और व्याख्याता हैं। समाचार चैनल 'आजतक' द्वारा उन्हें 50 शक्तिशाली भारतीय लोगों की सूची में शामिल किया गया है तथा कई टेलीविज़न कार्यक्रमों में इनकी भूमिका मुख्य अतिथि के रूप में रही है। उन्होंने श्री सत्यार्थी जी के विषय में अपने वक्तव्य में कहा कि "जिस मंच से स्वामी विवेकानन्द ने अपना स्वर दिया है, विश्व के उस मंच पर रवीन्द्रनाथ टैगोर की परम्परा रही है, उसी मंच से कैलाश जी भी अपना स्वर दे चुके हैं। कैलाश जी ने शोक की कोंपलें चुनी है- जो प्रौढ़ का शोक है, वह पका हुआ शोक है। जो वृद्ध का शोक है, वह चुका हुआ शोक है। जो युवा का शोक है, वह भोगा हुआ कष्ट है और जो बचपन का कष्ट है, वह कोंपल का दुख है। एक ऐसी कोंपल जिसे पाले ने या किसी अनावृष्टि ने या किसी अनाचारी ने कुचल दिया है। कैलाश जी की कविता में, उनकी कविता की भाषा में जो बुन्देलखण्ड है, जो बुन्देली और मालवी भाषा की समझ है, उसने भी उनकी कविता के शब्दों को वर्तुल किया है, घिसा है।"

इस समारोह में शामिल होने वाले अन्य वक्ता श्री लीलाधर जगूड़ी थे। वे पद्मश्री से अलंकृत, साहित्य अकादमी पुरस्कृत, प्रख्यात कवि तथा गद्यकार हैं। वे भारत की केंद्रीय साहित्य अकादमी द्वारा राइटर्स ऐट रेजिडेंस-फैलोशिप से भी सम्मानित हैं। उन्होंने अपने वक्तव्य में श्री सत्यार्थी जी और उनके कवि-कर्म के विषय में कहा कि "कविता को किसी तरह के लाइसेंस की ज़रूरत नहीं।"

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श्री कैलाश सत्यार्थी ने अपने नये कविता संग्रह के आवरण लोकार्पण समारोह के शुभ अवसर पर अपने वक्तव्य में कहा-"मैं आप सभी की प्रेरणा के आधार पर इस मंच से बोल पा रहा हूँ। कविता में जो ऊर्जा निहित है उसमें अलग ही सम्भावनाएँ हैं। दिल्ली मेरे लिए नयी थी, कोर्ट भी और बच्चों के साथ हो रही अमानवीय घटनाएँ भी नयी थीं लेकिन मैंने बिना संसाधनों के संघर्ष किया।

मेरी कविताओं के लिए आप सभी वक्ताओं ने जो भी कहा वह मेरे लिए प्रमाणपत्र के समान है। मैं साधारण जीवन जीता हूँ और साधारण कपड़े पहनता हूँ लेकिन घड़ी विदेशी कम्पनी की पहनता हूँ। मैं वैश्वीकरण के खिलाफ नहीं हूँ लेकिन चाहता हूँ कि करुणा का वैश्वीकरण हो।

यदि हमारे भीतर क्षमा का भाव है, सत्य है और पारदर्शिता है तो इसका अर्थ यह है कि एक बालक अभी भी हमारे भीतर है और हम सौभाग्यशाली हैं।

वसुधैव कुटुम्बकम एक नारा न रहे बल्कि हमारे जीवन जीने की दृष्टि बने।"

कार्यक्रम के अन्त में धन्यवाद ज्ञापन देते हुए श्री अरुण माहेश्वरी ने कहा कि ‘वाणी प्रकाशन ग्रुप का यह गौरव है कि यतीन्द्र मिश्र जैसे युवा और प्रतिभाशाली लोग हमारे साथ जुड़े हैं।’