डिजिटल गोष्ठी में नरेन्द्र कोहली के नवीनतम उपन्यास 'सुभद्रा' का लोकार्पण भी किया गया.
वाणी प्रकाशन ग्रुप ने हर्षोल्लास के साथ वाणी डिजिटल मंच द्वारा कालजयी कथाकार एवं मनीषी व पद्मश्री अलंकृत डॉ. नरेन्द्र कोहली के 81वें जन्मदिवस पर एक 'अभिनन्दन पर्व' का आयोजन किया। इस डिजिटल गोष्ठी में नरेन्द्र कोहली के नवीनतम उपन्यास 'सुभद्रा' का लोकार्पण भी किया गया। इस अवसर पर आयोजित विशेष चर्चा में वाणी प्रकाशन ग्रुप के प्रबन्ध निदेशक व वाणी फाउंडेशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी, वरिष्ठ लेखक प्रेम जनमेजय तथा वरिष्ठ पत्रकार वर्तिका नन्दा वक्ता के तौर पर उपस्थित थे।
कार्यक्रम की शुरुआत में वाणी प्रकाशन ग्रुप के प्रबन्ध निदेशक व वाणी फाउंडेशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी ने डॉ. नरेन्द्र कोहली का अभिनन्दन करते हुये उनका परिचय एक ऐसे साहित्यकार के रूप में दिया जिनका लेखन 'बन्दिशों’ से दूर है। उन्होनें बताया कि कोहली जी सन 1988 से वाणी प्रकाशन ग्रुप से प्रकाशित होते आए हैं। यह लेखक प्रकाशक सम्बन्ध में गरिमा, मधुरता और विश्वास की नई ऊँचाई है।
डॉ. नरेन्द्र कोहली भारतीय लेखकों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। हिन्दी साहित्य में उनकी पहचान अप्रतिम कथा-लेखक व व्यंग्यकार के रूप में है जिन्होंने मिथकीय पात्रों को एक नवीन ध्वनि व चिन्तन प्रदान किया है।
उनका रचना-कर्म कालजयी, राष्ट्र-भाव और सांस्कृतिक चेतना से परिपूर्ण है। अपनी अद्भुत व मानीखेज़ रचनाशीलता द्वारा वे साहित्यिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों की गुत्थियों को सुलझाते हुए आधुनिक समाज की समस्याओं एवं उनके समाधान को अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में समाज के समक्ष रख अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
इस विशेष चर्चा में डॉ. नरेन्द्र कोहली के लेखकीय जीवन की शुरुआत पर बात करते हए वरिष्ठ लेखक प्रेम जनमेजय ने कहा कि उनकी पहली कहानी वर्ष 1960 में प्रकाशित हई थी और उनकी लेखकीय आयु लगभग 61 वर्ष है। वे वाणी प्रकाशन ग्रुप से वर्ष 1988 से जुड़े हुए हैं और अब तक विभिन्न विधाओं में उनकी 92 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। वे एक युग प्रवर्तक साहित्यकार हैं।
वरिष्ठ पत्रकार वर्तिका नन्दा के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए डॉ. कोहली ने कहा, “कई बार ऐसा भी होता है कि जिन पात्रों को हम रच रहे होते हैं वे हमारे आस-पास ही होते हैं। जैसे कृष्ण की बातें और घटनाएँ जो हमें बार-बार याद दिलाती हैं कि मैं हूँ। सारे चरित्रों के साथ रहना पड़ता है और यह मेरे स्वभाव में है।”
वर्तिका नन्दा द्वारा पूछे गये प्रश्न कि “आज के ख़ास दिन पर क्या आपको किसी पाठक का संवाद याद आ रहा है?" के उत्तर में डॉ. कोहली ने कहा कि “यह पाठकों का रुचि-भेद है कि वह क्या पढ़ना चाहता है।”
कोहली जी ने साहित्य की सभी प्रमुख विधाओं (उपन्यास, व्यंग्य, नाटक, कहानी) एवं गौण विधाओं (संस्मरण, निबन्ध, पत्र आदि) और आलोचनात्मक साहित्य में अपनी लेखनी चलाई। हिन्दी साहित्य में ‘महाकाव्यात्मक उपन्यास’ की विधा को प्रारम्भ करने का श्रेय नरेन्द्र कोहली को ही जाता है। पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों की गुत्थियों को सुलझाते हुए उनके माध्यम से आधुनिक समाज की समस्याओं एवं उनके समाधान को समाज के समक्ष प्रस्तुत करना नरेन्द्र कोहली की अन्यतम विशेषता है। नरेन्द्र कोहली सांस्कृतिक राष्ट्रवादी साहित्यकार हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय जीवन-शैली एवं दर्शन का सम्यक् परिचय करवाया है।
डॉ. नरेन्द्र कोहली को पद्मश्री सम्मान, व्यास सम्मान, शलाका सम्मान, पंडित दीनदयाल उपाध्याय सम्मान व अट्टहास सम्मान से सम्मानित किया गया है।
डॉ. नरेन्द्र कोहली, पद्मश्री अलंकृत का लेखकीय जीवन अथक परिश्रम से परिपूर्ण और शाश्वत मानवीय संवेदना सम्पन्न है। हिन्दी साहित्य में नरेन्द्र कोहली आधुनिक तुलसीदास व व्यास परम्परा की श्रेणी में अग्रणी माने जाते हैं। इसी क्रम में 'सुभद्रा' उनका नवीनतम लेखकीय कार्य है।
वाणी प्रकाशन से प्रकाशित रचनाएँ: अभ्युदय (दो भाग), महासमर 1: बन्धन, महासमर 2: अधिकार, महासमर 3: कर्म, महासमर 4: धर्म, महासमर 5: अन्तराल, महासमर 6: प्रच्छन्न, महासमर 7: प्रत्यक्ष, महासमर 8: निर्बन्ध, महासमर (रजत संस्करण-9 खण्डों में), महासमर (विशेष संस्करण-9 खण्डों में ही उपलब्ध), सैरन्ध्री, न भूतो न भविष्यति (व्यास सम्मान 2013), मत्स्यगन्धा, हिडिम्बा, कुन्ती, शिखण्डी(उपन्यास), मेरे राम: मेरी रामकथा, पुनरारम्भ, अवसर, दीक्षा, संघर्ष की ओर, युद्ध (दो भाग), देश के हित में, सागर-मन्थन (उपन्यास); हम सबका घर (बाल उपन्यास); समग्र कहानियाँ (दो भाग); व्यंग्य गाथा (दो भाग), मुहल्ला, वह कहाँ है, सबसे बड़ा सत्य, हुए मर के हम जो रुसवा, नामचर्चा, देश के शुभचिन्तक, त्राहि त्राहि, इश्क़ एक शहर का, राम लुभाया कहता है, आयोग, सपने में आये तीन परिवार, गणतन्त्र का गणित, किसे जगाऊँ, प्रतिनाद, स्मरामि (व्यंग्य); किष्कधा, अगस्त्य कथा (नाटक); हिन्दी उपन्यास: सृजन और सिद्धान्त, प्रेमचन्द (आलोचना); जहाँ है धर्म वहीं है जय, नरेन्द्र कोहली ने कहा (विचार-लेख), Bondage : Story of Bhishma, The Return.