वाराणसी के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पाँच दिवसीय 'वाणी पुस्तक मेला' सामाजिक विज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं वाणी प्रकाशन ग्रुप के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित व्याख्यान व संवाद में "भारतीय आधुनिकता के रंग" विषय पर दिनांक 16 नवम्बर को परिचर्चा हुई।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे, प्रो. अभय कुमार दूबे, वरिष्ठ समाजशास्त्री, अध्यक्षता अभय कुमार ठाकुर वित्ताधिकारी, बी. एच. यू., प्रो. केशव मिश्रा, अध्यक्ष, इतिहास विभाग, बी. एच. यू., प्रो. प्रभाकर सिंह हिन्दी विभाग, बी. एच. यू., डॉ. अनुराधा सिंह एसो. प्रोफ़ेसर, इतिहास विभाग, बी. एच. यू. व अदिति माहेश्वरी-गोयल कार्यकारी निदेशक, वाणी प्रकाशन ग्रुप।
वरिष्ठ समाजशास्त्री प्रो. अभय कुमार दूबे ने कहा कि मुझे इस शीर्षक के अंदर एक बहुत ही रचनात्मक क़िस्म का अंतर्विरोध, एक ऐसा अंतर्विरोध दिखाई दिया जिसमें अपनी बात कहने की बहुत सी सम्भावनाएँ हैं। इस शीर्षक में मान लिया गया है कि आधुनिकता भारतीय हो चुकी है।
उन्होंने कहा कि इसमें एक विश्वास है कि अब जो आधुनिकता भारतीय हो चुकी है उसके रंग कौन-कौन से हैं और उसकी कौन सी ऐसी अभिव्यक्तियाँ हैं जिनको हम लोग रेखांकित कर सकते हैं। मुझे लगता है इस विश्वास की थोड़ी जाँच कर ली जाए क्या वास्तव में आधुनिकता भारतीय हो गयी है या हमारे पास ऐसी कोई आधुनिकता है जिसका मर्म भारतीय है।
बी.एच.यू. के वित्ताधिकारी प्रो. अभय कुमार ठाकुर ने कहा, "जहां तक भारतीय आधुनिकता का रंग विषय की बात है, निश्चित रूप से आधुनिकता एक पश्चिम केन्द्रीय अवधारणा है। लेकिन कोई भी विचारधारा एक ख़ास काल खंड की उपज होती है और इसलिए हमें उसकी सार्थकता और उपयोगिता को उस संदर्भ में समझने की ज़रूरत है।"
इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. केशव मिश्रा के अनुसार भारतीयों की जो आधुनिकता है वो तो हिस्टोग्राफ़ी के उस पक्ष से आती है जो कहता है 'टच एंड स्टिमुलाई', यानी जब तक आपका वेस्टर्न समाज के साथ सरोकार ही नहीं होगा, आपको तो आधुनिक हम मानेंगे ही नहीं, आधुनिकता के लिए सबसे पहले आप हमारे सम्पर्क में आइये।