वाराणसी के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पाँच दिवसीय 'वाणी पुस्तक मेला' सामाजिक विज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं वाणी प्रकाशन ग्रुप के संयुक्त तत्वावधान में आज 'युवा वाणी कविता' कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें प्रसिद्ध कवि व्योमेश शुक्ल का कविता पाठ एवं उनकी अध्यक्षता में युवा कवियों द्वारा कविता पाठ हुआ। युवा कवियों में अनिरुद्ध विजय, सीमांकन यादव, शाश्वत उपाध्याय, ऋषभ पांडेय, शुभम देव त्रिपाठी, ऋत्विक रुद्र, रौशन सिंह, तथादी, सुनील यादव, सुशांत शर्मा और राम कुमार शामिल हुए।
मुख्य अतिथि, प्रसिद्ध कवि व्योमेश शुक्ल ने अपने भाषण की शुरुआत में युवा कवियों की कविता सुनी, रचनात्मक आलोचना की, उनके प्रयास को सहारा, और आगे बढ़ने का मार्ग दिखाया।
प्रसिद्ध कवि व्योमेश शुक्ल ने कहा, “कविता को सोचने का तरीक़ा, अनेकांत है, एकांत चिंतन सम्भव नहीं है कविता पर। बहुत सारी सम्भावनाएँ होंगी और उन सारी सड़कों पर, एक कदम चलता हूँ कि सौ और राहें फूटती हैं और मैं उन सब पर से गुजरना चाहता हूँ।''
उन्होंने आगे कहा,''एक जो बात है जो आत्महनन है मेरे लिए लिए ऐसा कहना, मुझ समेत सारे कवियों में, कि हम लोग अतिरिक्त वाचालता का शिकार हैं। एक असमाप्त वाचालता जो है। हम, जब भी मौक़ा मिलता है, तो जितना कहना चाहिए, उससे ज़्यादा कहते हैं। मितभाषिता जो है वो एक पुरानी चीज़ मान ली गयी है।''
''कवि जो होना चाहता है, उसके मन में कवि की छवि कैसी है, इसकी बहुत गहरी मनोविज्ञानिक नहीं, समाज वैज्ञानिक जाँच, सोशल ऑडिट ज़रूरी है।”
कार्यक्रम में व्योमेश जी ने विष्णु खरे की कविता 'डरो' तथा अपनी कविता 'चौदह भाई बहन' पढ़ीं।
इस अवसर पर प्रो. अनुराधा सिंह ने कहा, “इस तरीक़े का आयोजन होते रहना चाहिए। और ऐसे आयोजनों में हमें पता चलता है कि कवि अपने समय की चीजों को यदि अपने काव्य में ना लाए तो वो पीछे छूट जाता है। मैडम चंद्रकला त्रिपाठी और सर वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी हमारे बीच उपस्थित हुए, इस आयोजन में चार चाँद लग गए।”
कार्यक्रम का संचालन प्रवीण वशिष्ठ द्वारा किया गया।