वाणी प्रकाशन ग्रुप से प्रकाशित कवि-कथानटी सुमन केशरी का नया कविता संग्रह ‘निमित्त नहीं!! : महाभारत की स्त्रियों की गाथा’ का लोकार्पण 6 अगस्त 2022 को शाम 5 बजे ‘साहित्य अकादेमी’ रवीन्द्र भवन, नई दिल्ली में किया जायेगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार मृदुला गर्ग करेंगी व मुख्य वक्ता वरिष्ठ कवयित्री अनामिका और वरिष्ठ कवि मदन कश्यप उपस्थित होंगे।
कार्यक्रम का संचालन वाणी प्रकाशन की कार्यकारी निदेशक अदिति माहेश्वरी-गोयल करेंगी।
वरिष्ठ पत्रकार व लेखिका मृणाल पाण्डे ने पुस्तक की प्रशंसा में कहा है- “रामकथा की तरह भारत की हर भाषा में धर्मवीर भारती, प्रतिभा बासु, बुद्धदेव बासु, इरावती कर्वे, दुर्गा भागवत से लेकर काशीनाथ सिंह तक रचनाकारों ने महाभारत को अपने समय सन्दर्भों में बाँचा है। एक कवि को काव्यात्मक धरातल पर महिमान्वित क्षत्रिय कुल की यह भीतरी कथाएँ कृष्ण वर्ण से आच्छन्न नज़र आती हैं। और उन कई विलक्षण महिलाओं को एक स्त्री की दृष्टि से टटोलने वाली 'निमित्त नहीं!!' संकलन की कविताएँ स्त्री-पुरुष से इतर कई-कई शाश्वत द्वैत उघाड़ती चली हैं: श्याम और उजले वर्ण का। सवर्ण अवर्ण का द्वैत, वैध अवैध और आर्य अनार्य का संघात। और सबसे ऊपर धर्म के नाम पर वह अधर्म युद्ध जिसकी अन्तिम विडम्बना महाकाव्य को व्यास के दिये मूलनाम 'जय' में निहित है। सुमन केशरी की कविताओं में महाभारत का इतिहास भरतवंश का उतना नहीं, जितना कि सत्यवती द्वैपायन वंश का इतिहास है जिसके तमाम पुरुष पात्रों को एक गृहयुद्ध की विभीषिका ने लौह पुतलों में बदल डाला है। अपने निजी नाम से वंचिता पुरुषों के नाम से अभिहित, कृष्ण की इकलौती सखी द्रौपदी, पाण्डवों की अभिशप्त माता कुन्ती, उसी की तरह वासना और छल के अन्धकारों से जूझती गान्धारी और चिता में पति के साथ जल चुकी रानी माद्री के आत्मालाप पुरुष प्रधान समाज में स्त्री होने की कालातीत विडम्बनाओं का आईना हैं। अपेक्षया कम लक्षित पात्र जैसे भीष्म की मोह अमोह की बड़वाग्नि में जलती माता गंगा, सत्यवती, शिखंडी, सुभद्रा, वनवासिनी हिडिम्बा, भानुमती, शकुन्तला, सावित्री और उत्तरा की परछाइयाँ भी यहाँ प्रेतात्माओं की तरह भटकती आज भी देश भर में अपने दुःखों के दाने बीनती फटकती नज़र आती हैं।”
लेखक के बारे में -
कवि-कथानटी सुमन केशरी ने कविता, शोधपरक लेख, कहानियाँ, विमर्श और यात्रा-वृत्तान्त लिखते-लिखते उन्होंने हाल ही में नाटक लिखने की शुरुआत की है।
प्रशासन से लेकर अध्यापन और फिर सामाजिक सक्रियता सभी उनकी रुचि है। वे मानती हैं कि उनका लेखक उनकी ज़िम्मेदार नागरिक होने की भूमिका से ही रस-प्राण पाता है।
उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हैं- याज्ञवल्क्य से बहस (2008), मोनालिसा की आँखें (2013), पिरामिडों की तहों में (2018) और एक ई-बुक - शब्द और सपने (2015 ) । उन्होंने दो पुस्तकों का सम्पादन किया है- जे एन यू में नामवर सिंह (2009), आर्मेनियाई जनसंहार : ऑटोमन साम्राज्य का कलंक (2021) (सुश्री माने मकर्तच्यान के साथ)।
सुमन केशरी ने प्रेप से लेकर आठवीं कक्षा तक के लिए ‘सरगम' व ‘स्वरा' नाम से हिन्दी पाठ्य पुस्तकें भी तैयार की हैं।
नाटक - गान्धारी (2022)
सुमन केशरी पिछले लगभग चालीस वर्षों से भारतीय मिथकों को आधार बनाकर कविताएँ आदि रच रही हैं। यह संकलन महाभारत की स्त्रियों से उनका अपनी तरह का संवेदनशील हार्दिक संवाद है।