भारतीय भाषा परिषद के प्रांगण में वाणी प्रकाशन ग्रुप के कोलकाता में नये पुस्तक विक्रय केन्द्र ‘साहित्य घर’ का उद्घाटन साहित्य अकादेमी से सम्मानित कवि अरुण कमल ने किया। यह कोलकाता के केन्द्र में हिंदी पुस्तकों की नई दुकान होगी। प्रकाशन की ओर से ग्रुप चेयरमैन अरुण माहेश्वरी ने बताया कि परिषद में नए खुले ‘साहित्य-घर’ में विद्यार्थियों को विशेष छूट दर पर नई पुस्तकें उपलब्ध होंगी। उन्होंने यह भी बताया कि इस साहित्य-घर में भारतीय भाषाओं की पुस्तकों का भी स्वागत होगा। यह आज से पहले कभी नहीं हुआ। इस अवसर पर परिषद के निदेशक व वरिष्ठ आलोचक शंभुनाथ ने कहा कि बाज़ारीकरण के दौर में साहित्य के अपने घर का स्वागत किया जाना चाहिए। उन्होंने वाणी प्रकाशन ग्रुप की साहित्यिक प्रतिबद्धता की सराहना की। भारतीय ज्ञानपीठ की पुस्तकें भी साहित्य-घर में उपलब्ध होंगी।
वाणी प्रकाशन ग्रुप और भारतीय भाषा परिषद द्वारा कोलकाता पुस्तक मेला के प्रेस कॉर्नर में संयुक्त रूप से ‘आज का समय और साहित्य’ पर एक संवाद आयोजित हुआ। इस अवसर पर प्रसिद्ध कथाकार कुसुम खेमानी के आत्मकथात्मक उपन्यास ‘मारवाड़ी राजबाड़ी’, वरिष्ठ आलोचक शंभुनाथ की नयी पुस्तक ‘भक्ति आंदोलन और उत्तर-आधुनिक संकट’, पुलिस महानिदेशक मृत्युंजय कुमार सिंह के उपन्यास ‘गंगा रतन बिदसी’ के विशेष तीसरे संस्करण और अलका सरावगी के नये उपन्यास ‘गाँधी और सरलादेवी चौधरानी : बारह अध्याय’, गरिमा श्रीवास्तव के उपन्यास ‘आउशवित्ज़ : एक प्रेम कथा’, मृदुला गर्ग की अपनी माता जी को समर्पित पुस्तक ‘वे नायाब औरतें’, अनामिका का उपन्यास ‘तृन धरि ओट’ और डॉ. सुनील कुमार शर्मा के काव्य संग्रह ‘हद या अनहद’ के दूसरे संस्करण का भी लोकार्पण हुआ| ये पुस्तकें वाणी प्रकाशन के स्टॉल (335) पर उपलब्ध हैं।
वरिष्ठ लेखिका कुसुम खेमानी ने कहा कि मेरा समस्त लेखन और साधना आपके असीम प्रेम का प्रतिफलन है| इससे पहले वाणी प्रकाशन की कार्यकारी निदेशक अदिति माहेश्वरी-गोयल ने अतिथियों का स्वागत किया और लोकार्पित होने वाली पुस्तकों से परिचय कराया। वाणी प्रकाशन ग्रुप की कार्यकारी निदेशक अदिति माहेश्वरी-गोयल ने बताया कि साठवें वर्ष में प्रवेश कर चुका वाणी प्रकाशन ग्रुप अपनी साहित्यिक प्रतिबद्धता का निर्वाह सत्य और साहस के साथ कर रहा है।
संवाद सत्र में साहित्य अकादेमी सम्मान से सम्मानित कवि अरुण कमल ने कहा कि किताबें कभी खत्म नहीं होंगी। कविता के लिए समय कठिन होने के बावजूद कविताएँ लिखी जा रही हैं। आज असंख्य स्त्रियाँ कविता लिख रही हैं। असंख्य दलित स्त्रियाँ कविता लिख रही हैं। यह बात आश्वस्त करती है। आज हमारे जीवन में राजनीतिक हस्तक्षेप जितना है उतना पहले कभी नहीं था। साहित्य हमारा अन्तिम मोर्चा है। अगर यहाँ भी हम हार गये तो कभी नहीं बचेंगे। लेखक मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा, ‘मनुष्य के दैनिक संघर्ष का परिणाम है साहित्य। आज बाज़ार के बीच से संवेदना और सौन्दर्य को खींचकर लाना है।' प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो.हितेन्द्र पटेल ने कहा, 'साहित्य के साथ वैयक्तिकता से अधिक सामाजिकता की ज़रूरत है। साहित्य का सम्बन्ध संस्कृति से है। साहित्य सदियों से घृणा, हिंसा और दमन के समानान्तर मानवता की निश्छल आवाज़ है। मानवता को बचाना है तो पुस्तक पढ़ने की संस्कृति को बचाना होगा।’
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए शंभुनाथ ने कहा कि पुस्तक हमें ज़िन्दा रखती है। अपनी संस्कृति को ज़िन्दा रखना है तो पुस्तकों को ज़िन्दा रखें।
संजय जायसवाल ने संचालन और सुनील कुमार शर्मा ने अन्त में धन्यवाद ज्ञापन किया।